केरल की पहली आदिवासी महिला IAS, पढ़िए इनकी सक्सेस स्टोरी, कितना संघर्ष भरा रहा सफर
श्रीधन्या सुरेश की सफलता की कहानी एक प्रेरणा है, जो बताती है कि कठिनाइयों और संसाधनों की कमी के बावजूद भी अडिग मेहनत और लगन से असंभव को संभव बनाया जा सकता है। श्रीधन्या, केरल की पहली आदिवासी महिला आईएएस, ने अपने संघर्षमय बचपन और सीमित संसाधनों के बावजूद यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त की।
श्रीधन्या सुरेश का संघर्षमय सफर
1. कठिनाइयों भरा बचपन
जन्म और प्रारंभिक जीवन: श्रीधन्या सुरेश का जन्म केरल के वायनाड जिले में हुआ था। वह कुरिचिया जनजाति से आती हैं, जिनका बचपन संसाधनों की कमी और कठिन परिस्थितियों में बीता।
– शिक्षा: श्रीधन्या ने कालीकट के सेंट जोसेफ कॉलेज से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और फिर कालीकट यूनिवर्सिटी कोझिकोड से जूलॉजी में मास्टर डिग्री प्राप्त की। उनकी शिक्षा के दौरान भी संसाधनों की कमी ने उनकी राह को चुनौतीपूर्ण बना दिया।
2. हॉस्टल वॉर्डन से ऑफिसर बनने का सफर
– सरकारी नौकरी: पढ़ाई के बाद, श्रीधन्या को अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में एक सरकारी नौकरी मिली, जहां उन्होंने आदिवासी छात्रों के हॉस्टल में वॉर्डन के रूप में काम किया।
– लक्ष्य की ओर बढ़ना: हालांकि वह अपनी नौकरी से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थीं, श्रीधन्या ने अपने बड़े सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करने का फैसला किया और आईएएस बनने का संकल्प लिया।
3. संघर्ष और सफलता
– परीक्षा की तैयारी: 2018 में, श्रीधन्या ने यूपीएससी परीक्षा के पहले दो राउंड पास कर लिए, लेकिन इंटरव्यू राउंड के लिए दिल्ली जाने के पैसे नहीं थे। इस स्थिति में, उनके दोस्तों ने उनकी मदद की, जिससे वह दिल्ली जा सकीं।
– सफलता: तीसरे प्रयास में, श्रीधन्या ने इंटरव्यू में 410वीं रैंक प्राप्त की और आखिरकार आईएएस अधिकारी बन गईं। उनकी यह सफलता उनकी मेहनत, समर्पण और संघर्ष का परिणाम है।
श्रीधन्या सुरेश की उपलब्धि
श्रीधन्या की कहानी यह दर्शाती है कि अगर आपके पास लक्ष्य और मेहनत का जज्बा है, तो कठिनाइयों और संसाधनों की कमी भी आपकी सफलता की राह में रुकावट नहीं बन सकती। उन्होंने अपनी कठिनाइयों को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और अपने सपने को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी सफलता न केवल उनके परिवार और समुदाय के लिए गर्व की बात है, बल्कि यह सभी के लिए एक प्रेरणा भी है।