राजा सारस के शहर सिरसा की कहानी
सिरसा: राजा सारस का शहर। बाबा सरसाईनाथ की नगरी। कभी सरस्वती नगर था तो महाभारत के समय शैरिष्क के रूप में वजूद में था। उत्तर भारत के प्राचीन शहरों में से एक है सिरसा। देश के दूरदराज के इलाके में जब सिरसा का नाम लिया जाता है तो आज जेहन में गुरमीत राम रहीम की तस्वीर आ जाती है। पर सिरसा विवादों ही नहीं रिकॉर्डों का भी शहर है। विवादों को लेकर सिरसा की पहचान बनाई गई, पर अनूठे रिकॉर्डों को लेकर नहीं। 43 हजार यूनिट के साथ रक्तदान में सिरसा रिकॉर्डधारी है। हरियाणा में सबसे अधिक 128 गौशालाएं यहां पर हैं। हरियाणा में सबसे अधिक गेहूं, कॉटन किन्नू का उत्पादन सिरसा में होता है। 1837 से लेकर 1884 तक अंग्रेजी हकूमत में भी सिरसा जिला था। तब फतेहाबाद से लेकर पंजाब का फाजिल्का सिरसा जिला का हिस्सा था। ये जो हरियाणा सीरिज हैं के अंतर्गत आज सिरसा की कहानी पर एक नजर
सिरसा नगर का इतिहास बहुत प्राचीन है। सरस्वती नदी के तट र बसा होने के कारण बहुत समय पहले सिरसा का नाम सरस्वती नगर था। महाभारत में इसका उल्लेख शैरिष्क नाम से है। जनश्रुति के अनुसार हजारों साल पहले अपने वनवास काल के समय में पांच पांडवों में से नकूल और सहदेव ने यहां पर वनवास काटा। 1173 में राजा सारस के वंशव पालवंशीय राजा कुंवरपाल सरस्वती नगर पर शासन करते थे। हजारों वर्ष पहले इस इलाके में जंगल ही जंगल थे और इसे कुरु प्रदेश के नाम से जाना जाता था। उसके बाद यह नगर तबाह हो गया। साल 1838 में आधुनिक सिरसा नगर को बसाया गया। जयपुर के तत्कालीन अधीक्षक मेजर जनरल थोरस्वी ने इस नगर की नींव रखी। गुलाबी नगरी की तर्ज पर इसे बसाया गया। आठ बाजार और चार चौराहें बनाए गए हैं। प्रत्येक चौराहें पर एक बावड़ी बनाई गई। पानी के लिए बावडियों के अलावा तालाब बनाए गए। 1173 ईसवी में राजा कुंवरपाल ने आक्रामणकारियों से बचने के लिए एक विशाल किला बनाया। आज यह किला थेहड़ के रूप में विद्यमान है। इस थेहड़ की ईंटों से ही आधुनिक सिरसा नगर बसाया गया। हिसार से आने वाले लोग जहां बसे उसे हिसारिया बाजार नाम दिया गया।
नोहर से आने वाले हिस्से को नोहरिया बाजार, रानियां से आने वाले इलाके को रानियां बाजार का नाम दिया गया। आधुनिक नगर बसने से एक साल पहले ही साल 1837 में अंग्रेजी शासकों ने इसे जिला बनाया। 1884 तक सिरसा देश के मानचित्र पर जिले के रूप मे अस्तित्व में रहा। उस समय सिरसा जिला बहुत ही समृद्ध था और विस्तृत क्षेत्र में फैला था। अंग्रेजी हुकूमत ने अपनी मंशा पूरी होने के बाद साल 1994 में सिरसा जिला तोड़ दिया। सिरसा जिला के 126 गांव जिला हिसार में और डबवाली तहसील के 31 गांवों को फिरोजपुर में मिला दिया गया। 1 सितम्बर 1975 को हिसार से अलग होकर सिरसा को जिला बनाया गया। जिला बनने के बाद सिरसा ने उपेक्षा के बीच पिछले करीब 46 बरसों में तरक्की का सफर तय किया है।
राजस्थान और पंजाब से टे इस जिला में तीन राज्यों की संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है। बागड़ी और पंजाबी संस्कृति को समेटे सिरसा जिला के लोगों ने अपने बलबूते पर पहचान बनाई। 334 गांवों को समेटे सिरसा जिला 4277 वर्ग किलोमीटर के साथ भौगोलिक नजरिए से हरियाणा का सबसे बड़ा जिला है। पिछले चार दशकों में सिरसा ने खेती और दूध उत्पादन में विशेष तौर पर प्रगति की है। 1975 में धान का उत्पादन 29 हजार मीट्रिक टन, कॉटन करीब डेढ़ लाख टन और गेहूं का उत्पादन 1 लाख 60 हजार टन था। अब हर साल 10 लाख मीट्रिक टन गेहूं, 1 लाख 40 हजार मीट्रिक टन कॉटन का उत्पादन होता है। हरियाणा में सबसे अधिक कॉटन जिङ्क्षनग कारखाने सिरसा में हैं। यहां पर करीब 38 कारखाने हैं। हालांकि औद्योगिग दृष्टि से यह इलाका पिछड़ा हुआ हे। 1997 में यहां पर लघु और कुटिर उद्योगों की संख्या करीब 6700 थी। अब यह करीब 2 हजार हर गई है। पर्यावरण के नजरिए से भी स्थिति अच्छी नहीं है। करीब 3 प्रतिशत भूमि पर पेड़ पौधे हैं। सिरसा केा आध्यत्म की नगरी भी कहा जाता है। यहां पर चारों दिशाओं में डेरे हैं। सिरसा में राजस्थान की ओर जाने वाले सिरसा-भादरा मार्ग पर डेरा सच्चा सौदा है।
साल 1948 में मस्ताना महाराज ने इस डेरा की स्थापना की थी। हिसार रोड पर सिकंदरपुर में राधा स्वामी सत्संग घर है जो पंजाब के ब्यास के बाद राधा स्वामी सत्संग घर की सबसे बड़ी शाखा है। शहर में रानियां गेट पर बाबा बिहारी की समाधि है तो डबवाली रोड पर बाबा श्योदास डेरा है। रानियां रोड पर तारा बाबा कुटिया है। हिसार रोड पर गांव संघर साधा में डेरा बबा भूम्मण शाह है। शहर में ऐतिहासिक चिल्ला साहिब और दशम पातशाही गुरुघर हैं। पुराने बस स्टैंड के पास दो शताब्दी पुराना सैंट मैथोडिस्ट चर्च है। अध्यात्म के साथ इसे राजनेताओं की नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
सिरसा जिला के गांव चौटाला के चौधरी देवीलाल दो बार उपप्रधानमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे। ओमप्रकाश चौटाला पांच बार चीफ मिनिस्टर बने। भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रह चुके सरदारा ङ्क्षसह भी इसी गांव के रहने वाले हैं तो डेरा सच्चा सौदा के चीफ गुरमीत राम रहीम के कृत्यों का पर्दाफाश करने वाले शहीद पत्रकार रामचंद्र छत्रपति सिरसा जिला के गांव दड़बी के रहने वाले थे। पंजाबी सिनेमा को संजीवनी देने वाले फिल्ममेकर मनमोहन ङ्क्षसह भी यहां से ताल्लुक रखते हैं। सदियों पुराने सिरसा की कहानी को एक ही हिस्से में समेटना आसान नहीं हैं। ऐसे में अगले वीडियो में सिरसा की साहित्यिक, यहां की खेतीबाड़ी, घग्घर नदी, अनाजमंडी की कहानी को आपके सामने लाएंगे।